इस्तिग़फ़ार क्या है?
इस्तिग़फ़ार का अर्थ है: अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगना।
अक्सर हम जानते हुए और अनजाने में छोटी-बड़ी गलतियाँ कर बैठते हैं। इंसान होने की वजह से गुनाह होना स्वाभाविक है, लेकिन अल्लाह से माफी मांगते रहना ही ईमानदार बंदे की निशानी है।
अल्लाह तआला फ़रमाता है:
“हे मेरे बंदों जो अपने ऊपर ज़ुल्म कर बैठे हो, अल्लाह की रहमत से मायूस मत हो। बेशक अल्लाह सब गुनाहों को माफ़ कर देता है।”
(सूरह ज़ुमर: 53)
इस्तिग़फ़ार की अहमियत
इस्तिग़फ़ार सिर्फ़ जुबान का ज़िक्र नहीं, बल्कि दिल की सच्ची तौबा है।
नबी ﷺ ने फ़रमाया:
“मैं रोज़ाना सत्तर बार (या उससे ज़्यादा) अल्लाह से इस्तिग़फ़ार करता हूँ।”
(सहीह बुख़ारी)
जब नबी ﷺ, जिनके गुनाह नहीं थे, वो भी रोज़ इस्तिग़फ़ार करें –
तो हमें इसकी और ज़्यादा ज़रूरत है।
इस्तिग़फ़ार के फ़ायदे और बरकतें
1. गुनाहों की माफी मिलती है
इस्तिग़फ़ार से दिल साफ़ होता है, नफ़्स हल्का होता है और इंसान की रूह रोशन होती है।
यह गुनाहों को धो देता है, जैसे पानी मैल को धो देता है।
2. अल्लाह की रहमत और रहमत के दरवाज़े खुलते हैं
अल्लाह फ़रमाता है:
“अपने रब से माफी मांगो, वह माफ़ करने वाला है। वह तुम्हें आसमान से खूब बारिश भेजेगा…”
(सूरह नूह: 10-11)
यानी बरकत, रिज़्क़ और राहत सब इस्तिग़फ़ार से मिलता है।
3. दिल को सुकून और राहत मिलती है
जब दिल में बोझ हो, गुस्सा हो, चिंता हो –
इस्तिग़फ़ार पढ़ो,
दिल गर्मी से ठंडा हो जाता है।
यह तनाव, बेचैनी और उदासी को दूर करता है।
4. रिज़्क़ में बरकत मिलती है
अल्लाह तआला फ़रमाता है कि इस्तिग़फ़ार से:
- रोज़ी बढ़ती है
- नए रास्ते खुलते हैं
- तकलीफ़ें दूर होती हैं
यानी बरकत का असली दरवाज़ा इस्तिग़फ़ार है।
5. दुआ क़ुबूल होने में मदद
जब इंसान का दिल साफ़ हो जाता है,
तो दुआ जल्दी क़ुबूल होती है।
इस्तिग़फ़ार दुआ का कुंजी है।
इस्तिग़फ़ार कैसे पढ़ें?
आप किसी भी वक़्त, कहीं भी, सच्चे दिल से कह सकते हैं:
اَسْتَغْفِرُ اللّٰه
Astaghfirullah
(हे अल्लाह! मैं तुझसे अपने गुनाहों की माफी मांगता हूँ।)
या थोड़ा विस्तृत रूप में:
اَسْتَغْفِرُ اللّٰهَ رَبِّي مِنْ كُلِّ ذَنْبٍ وَّأَتُوْبُ اِلَيْهِ
कब-कब इस्तिग़फ़ार करना चाहिए?
- नमाज़ के बाद
- सोने से पहले
- सुबह-शाम
- गलती या गुनाह के बाद
- किसी मुश्किल वक़्त में
- रास्ते में, दफ़्तर में, सफ़र में — हर वक़्त
इस्तिग़फ़ार को आदत बना लो।
नतीजा (Conclusion)
इस्तिग़फ़ार सिर्फ़ लफ्ज़ नहीं,
यह अल्लाह की तरफ़ वापसी है।
जो बंदा सच्चे दिल से तौबा और इस्तिग़फ़ार करता है,
अल्लाह:
- उसके गुनाह माफ़ करता है
- उसकी मुश्किलें आसान करता है
- उसके लिए रहमत और बरकत के दरवाज़े खोल देता है
बस दिल सच का होना चाहिए।





