सब्र (धैर्य) इस्लाम में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और मूल्यवान गुण माना जाता है। अल्लाह ने कुरान में बार-बार सब्र करने वालों के लिए विशेष इनाम और वादे किए हैं। यह केवल मुश्किल समय में सहनशीलता नहीं बल्कि ईमान और अल्लाह पर भरोसा बनाए रखने का नाम है।
1. सब्र का अर्थ
सब्र का मतलब है कठिनाई, परेशानी या नुकसान के समय में संयम और धैर्य बनाए रखना। यह केवल व्यक्तिगत समस्याओं तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र—व्यापार, रिश्ते, इबादत और समाजिक जीवन में भी जरूरी है।
2. कुरान में सब्र करने वालों के लिए वादे
कुरान में अल्लाह ने कई बार सब्र करने वालों के लिए वादे किए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- अल्लाह का इनाम:
“बे शुब्हा! अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है।” (सूरा अल-बकरा 2:153)
इसका मतलब है कि जो व्यक्ति मुश्किल समय में धैर्य रखता है, अल्लाह उसकी मदद और रहमत के साथ है।
- स्वर्ग का वादा:
“जो लोग सब्र करते हैं, उनके लिए उनके अच्छे कर्मों का प्रतिफल है।” (सूरा अज़-ज़ुमर 39:10)
यह हमें याद दिलाता है कि सब्र करने वाले का सवाब इस दुनिया और आख़िरत दोनों में मिलेगा।
- परेशानियों में राहत:
“असली कठिनाई के बाद आसानी है।” (सूरा अश-शरह 94:6)
यह आयत हमें सिखाती है कि संकट और मुश्किलें अस्थायी हैं, और हर कठिनाई के बाद राहत और सुख आएगा।
3. सब्र करने का तरीका
- दुआ और तौबा: कठिनाई में अल्लाह से मदद मांगें और अपने गुनाहों की माफी माँगें।
- सकारात्मक सोच: हर परिस्थिति में उम्मीद बनाए रखें कि अल्लाह का सहारा आपके साथ है।
- इबादत और नमाज़: रोज़ाना की इबादत और नमाज़ के माध्यम से आत्मबल बढ़ाएँ।
- धैर्य का अभ्यास: छोटी-छोटी चीज़ों में भी सब्र का अभ्यास करें जैसे लंबी लाइनों में इंतजार करना या किसी विवाद में संयम रखना।
4. सब्र के फायदे
- मानसिक शांति और संतुलन
- रिश्तों में मजबूती
- कठिनाइयों में साहस और हिम्मत
- अल्लाह की मदद और रहमत
निष्कर्ष
सब्र केवल सहनशीलता नहीं, बल्कि ईमान की परीक्षा और अल्लाह की ओर से इनाम का रास्ता है। हर मुसलमान को चाहिए कि वह जीवन की हर परिस्थिति में धैर्य और संयम बनाए रखे। अल्लाह का वादा है कि जो सब्र करेगा, वह न केवल दुनिया में बल्कि आख़िरत में भी उसकी मदद और इनाम पाएगा।





